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पाठ-1 समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा
Part 2
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए।
स्टॉक तथा प्रवाह
स्टॉक
स्टॉक से अभिप्राय समय के एक मिश्रित बिंदु पर मापी जाने वाली मात्रा है।
स्टॉक का समय काल नहीं होता है।
स्टॉक प्रवाह को प्रभावित करता है।
प्रवाह
प्रवाह से अभिप्राय समय की एक विशेष अवधि में मापी जाने वाली मात्रा है।
प्रवाह का समय काल होता है।
प्रवाह स्टॉक को प्रभावित करता है।
स्थिर पूंजी का उपभोग तथा पूंजीगत हानि
स्थिर पूंजी का उपभोग
इससे अभिप्राय स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली कमी से है। (निरंतर प्रयोग से)
स्थिर पूंजी का उपभोग सामान्य टूट-फूट आकस्मिक हानि तथा प्रत्याशित अप्रचलन के कारण होता है।
इसे मूल्यह्रास कोष द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है।
पूंजीगत हानि
इससे अभिप्राय स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में कमी होने से है जब वह प्रयोग की जाती है।
पूंजीगत हानि प्राकृतिक आपदाओं तथा आर्थिक मंदी के कारण से होती है।
इसे स्थिर परिसंपत्तियों के बीमा द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है
प्रत्याशित अप्रचलन तथा अप्रत्याशित अप्रचलन(प्रयोग से बाहर होने की स्थिति)
प्रत्याशित अप्रचलन
इसका अभिप्राय तकनीक या मांग में परिवर्तन के कारण स्थित संपत्ति के मूल्य में होने वाली कमी से है।
यह मूल्यह्रास का एक भाग है।
प्रत्याशित अप्रचलन को मूल्यह्रास आरक्षित कोष द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है।
अप्रत्याशित अप्रचलन
इससे अभिप्राय प्रकृति आपदाओं या आर्थिक मंदी के कारण स्थित संपत्ति के मूल्य में होने वाली कमी से है।
यह मूल्यह्रास का एक भाग नहीं है।
अप्रत्याशित अप्रचलन को बीमा द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है।
निवेश की अवधारणा तथा इसके घटक
निवेश : निवेश से अभिप्राय पूंजी में होने वाले वृद्धि से है।
इसके दो घटक हैं
स्थिर निवेश
माल सूची निवेश
स्थिर निवेश : स्थिर निवेश से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक वृद्धि का होना है।
माल सूची निवेश : किसी एक समय पर उत्पादकों के पास जो स्टॉक होता है उसमें तैयार वस्तु, अर्थ-तैयार वस्तुएं तथा कच्चा माल शामिल होता है।
मूल्यह्रास की अवधारणा :
स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में सामान्य टूट-फूट या आकस्मिक हानि के कारण आने वाली कमी को मूल्यह्रास कहते हैं।
मूल्यह्रास आरक्षित तथा इसका महत्व:
मूल्यह्रास कोष का उद्देश्य घिसी -पिटी स्थिर संपत्तियों का पुनः स्थापना करना है।
मूल्यह्रास के आरक्षित कोष के अभाव के कारण पुन: स्थापना निवेश नहीं हो पाएगा जिससे उत्पादन घट जाएगा तथा फलस्वरुप आय तथा रोजगार का स्तर घटेगा और अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी के रूप में आएगी।
अर्थव्यवस्था को चार क्षेत्रों में बांटा जाता है।
परिवार क्षेत्र: इसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोक्ताओं को शामिल किया जाता है यह उत्पादन के कारकों का स्वामी रहता है।
उत्पादक क्षेत्र: इसमें अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादन करने वाली इकाइयां शामिल होती हैं।
सरकारी क्षेत्र : इसमें कल्याणकारी एजेंसी के रूप में सरकार तथा उत्पादक के रूप में सरकार सम्मिलित होती है।
विदेशी क्षेत्र : इसमें शेष विश्व क्षेत्र को शामिल किया जाता है अतः इसमें आयात एवं निर्यात की क्रिया शामिल होती है।
अंतर क्षेत्रीय प्रवाह : अर्थव्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र अन्य प्रकार से अन्य क्षेत्र पर निर्भर रहता है इसे अंतर क्षेत्रीय कहते हैं।
जैसे:
परिवार क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं की पूर्ति के लिए उत्पादक क्षेत्र पर निर्भर करता है।
उत्पादक क्षेत्र उत्पादन के कारकों (भूमि,श्रम,पूंजी,उद्यम) के लिए परिवार क्षेत्र पर निर्भर करता है।
सरकारी क्षेत्र अपनी कर तथा करेतर ( शुल्क, जुर्माना ) आय आदि के लिए परिवार क्षेत्र पर निर्भर करता है।
उत्पादक तथा परिवार क्षेत्र कानून व्यवस्था तथा सुरक्षा के लिए सरकार पर निर्भर करता है।
अर्थव्यवस्था में वास्तविक तथा मौलिक प्रवाह
वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं तथा सेवाओं से है।
मौद्रिक प्रवाह मौद्रिक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा के प्रवाह से है।
आय का चक्रीय प्रवाह
अर्थव्यवस्था में तीन क्रियाएं कभी नहीं रुकती है।
वस्तु तथा सेवाओं का उत्पादन
आय का सर्जन
व्यय
उत्पादक क्षेत्र कारक सेवाओं का उपयोग करके वस्तुओ तथा सेवाओ का उत्पादन करता है तथा परिवार क्षेत्र को कारक सेवाओं के भुगतान के रूप में जो आय प्राप्त होती है। वह वस्तु के तथा सेवाओ पर व्यय कर देता है। इसलिए अर्थव्यवस्था मे आय उत्पादन तथा व्यय बराबर होते हैं और इस स्थिति को चक्रीय प्रवाह कहा जाता है।
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